Wednesday, 2 October 2019

जो चले जाते हैं वो कहीं नहीं जाते


जो चले जाते हैं
दरअसल वो कहीं नहीं जाते
ठहरे रहते हैं आसपास
तैरते रहते हैं पानी की बूंदों से हवा में
उग आते हैं इन्द्रधनुष बन ।
जो चले जाते हैं
वो कहीं नहीं जाते
सितारे बन टंक जाते हैं
आसमान पर
हर रात उग आते हैं ध्रुव तारा बन ।
जो चले जाते हैं वो कहीं नहीं जाते
पीछा करते हैं लगातार
कभी रसोई घर में
कभी सोफे पर
या कभी सीढ़ियों से उतरते चढ़ते ।
जो चले जाते हैं
वो कहीं नहीं जाते
धूप बन पसरे रहते हैं आँगन में
पैरों के साथ अंदर आ बैठ जाते हैं यूँ ही किसी कोने में
कहते हैं,कहा था न मैंने - अभी नहीं समझेगी
जब हम नहीं रहेंगे याद करना तब ।
हवा बन फुसफुसा जाते हैं कानों में
बढ़ती घटती  धड़कनों के साथ धड़कते हैं कभी
फिर पास आ बिस्तर पर आज भी सुनाते हैं लोरियां
बचा रह जाता है कुछ सच, कुछ झूठ
कुछ उलाहने
या कुछ प्यार भरी झप्पियाँ।

जो चले जाते हैं
वो कहीं नहीं जाते ।

अमनदीप / विम्मी
०२-१०-२०१९

कविता संग्रह

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