Saturday, 31 March 2018

ऐ दोस्त

एक शाम हुआ करती थी
जो ढल गई
तेरे जाने के बाद एै दोस्त !
चाय की चुस्कियों में अब -
मज़ा नहीं रहा |
बादल गरजते रहे , बरसते भी रहे -
चौकोर टेबल ,
और वो चार कुरसियां !
नज़र नहीं आतीं |
एक प्याला चाय ,
और कई घंटे बातों के -
खत्म नहीं होते थे डांट पड़ने के बाद भी |
फिर इंतजार अगली चाय का ...
अब -
न वो शामें हैं ,
न कोई दोस्त तेरे जैसा
सिर्फ उलझने हैं
और -
उलझनों की चाय -
अच्छी नहीं लगती |

अमनदीप / विम्मी

Monday, 12 March 2018

कैक्टस सुंदर होते हैं

कभी सपनो में तो कभी,
दीवार पर लगे पोस्टर से  झांकते  हो .
आ क्यों नहीं जाते
सामने मेरे
उग क्यों नहीं पड़ते मेरे अन्दर
जानती हूँ
सूख गयी है कोख
जो उगते हैं सूखी धरती पर
वो  कैक्टस क्या सुन्दर नहीं होते ?
कांटे होने पर भी
सजती है धरती उनसे
फूल भी उगते हैं उन पर
तुम भी उग पड़ो एक बार .........
बस ,   एक बार .........
फिर चाहे कैक्टस बन कर!!!!

©®अमनदीप / विम्मी

कविता संग्रह

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