दूर गगन में उड़ती चिड़िया
लौट धरा पर मुझ तक आई
बोली तू भी पँख लगा ले
चल सपनों में गोते खा ले ।
नभ है नीला, सूरज पीला
धरती का हर रँग सजीला
इन्द्रधनुष के सातों रँग से
एक नया परिधान सिला ले ।
देख खड़ा उत्तुंग हिमालय
पावन गँगा विरक्त शिवालय
जितेंद्रिय बन, शीश उठा चल
जग शांति की अलख जगा ले ।
माना बहुत कठिन डगर है
पग पग पर गिरने का डर है
कल एक सूरज फिर निकलेगा
मन में ये विश्वास जगा ले ।
तू भविष्य है कैसा संशय
उठ चला चल होकर निर्भय
बहने दे विपरीत हवाएँ
आँधी में एक दीप जला ले ।
©®अमनदीप / विम्मी