Sunday, 26 January 2020

बाल कविता


दूर गगन में उड़ती  चिड़िया
लौट धरा पर मुझ तक आई
बोली तू  भी पँख लगा ले
चल सपनों में गोते खा ले ।

नभ है नीला, सूरज पीला
धरती का हर रँग सजीला
इन्द्रधनुष के सातों रँग से
एक नया परिधान सिला ले ।

देख खड़ा उत्तुंग हिमालय
पावन गँगा विरक्त शिवालय
जितेंद्रिय बन, शीश उठा चल
जग शांति की अलख जगा ले ।

माना बहुत कठिन डगर है
पग पग पर गिरने का डर है
कल एक सूरज फिर निकलेगा
मन में ये विश्वास जगा ले ।

तू भविष्य है कैसा संशय
उठ चला चल होकर निर्भय
बहने दे विपरीत हवाएँ
आँधी में एक दीप जला ले ।

©®अमनदीप / विम्मी

Tuesday, 21 January 2020

प्रेम है या कल्पना




रोज- रोज तेरा सपने में देना दस्तक
 ज़ुल्फों से लुढ़कना शबनमी कतरों का
मेरी उनींदी आँखों पर....
वो उगते सूरज सा पहला चुम्बन पेशानी पे मेरी
लीपे हुए आँगन में
तुलसी के चौबारे से उठती
अगरबत्ती की महक....
 कभी आम के पेड़ पर लगे झूले से आती तेरे बदन की खुशबू
या कि तेरी चुन्नी का लिपट जाना मुझसे !
दिन भर उँगलियों में उँगलियाँ बाँधे
पड़े रहना अलसाई धूप में...
फिर, कभी मेरे काँधे पर तुम्हारे सर का होना
सर्द हवाओं के बीच से निकल
तुम्हारी यादों का लिपटना कोहरे की तरह
भीगना तेरे संग पहली बारिश में
या कि सिगड़ी पर भुने भुट्टे की महक सा महकना साथ.....
खिड़की से टँगे विंड-चाइम का गुनगुनाना हौले-हौले
या की हरसिंगार के फूल का पेड़ से टँगे रहना दिन भर ....
यह सब सोच पेट में तितलियों का उड़ना
गर ये प्रेम है तो
कल्पना क्या है
और गर ये कल्पना है
तो प्रेम ....?

©®अमनदीप/विम्मी

कविता संग्रह

  https://www.amazon.in/dp/B09PJ93QM2?ref=myi_title_dp