Sunday, 26 January 2020

बाल कविता


दूर गगन में उड़ती  चिड़िया
लौट धरा पर मुझ तक आई
बोली तू  भी पँख लगा ले
चल सपनों में गोते खा ले ।

नभ है नीला, सूरज पीला
धरती का हर रँग सजीला
इन्द्रधनुष के सातों रँग से
एक नया परिधान सिला ले ।

देख खड़ा उत्तुंग हिमालय
पावन गँगा विरक्त शिवालय
जितेंद्रिय बन, शीश उठा चल
जग शांति की अलख जगा ले ।

माना बहुत कठिन डगर है
पग पग पर गिरने का डर है
कल एक सूरज फिर निकलेगा
मन में ये विश्वास जगा ले ।

तू भविष्य है कैसा संशय
उठ चला चल होकर निर्भय
बहने दे विपरीत हवाएँ
आँधी में एक दीप जला ले ।

©®अमनदीप / विम्मी

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