Thursday, 17 June 2021

असमय मृत्यु एक निरंतर जारी रहने वाली प्रक्रिया है

 जन्म निश्चित होता है...मृत्यु ...अनिश्चित


किसी जीव का धरती पर आना, 

उसकी अपनी इच्छा पर निर्भर होता है!

... ऐसा डॉक्टर ने कहा था, जब प्रसव तिथि आने के पहले बच्चा आने की ज़िद कर बैठा...

सुना तो एक देहातिन से भी था, 

कितना भी जहर खा लो, आग नहीं लगती कोख को, मुई ने जन्म लेना था...सो ले कर रही

एक तो लड़की और ऊपर से काली धूतक... और तभी से तिल तिल मरने लगी थी वो....

अनिश्चित है....समय मृत्यु का...

मरना कहाँ जरूरी है..देह के साथ

जीते जी भी मरा जा सकता है ......कई बार!

झूठ का संसार बुनने वाला आदमी ...पहले झूठ से पहले मरता है ...फ़िर लगातार, हर झूठ के साथ...थोड़ा थोड़ा

दगाबाजी से, चोरी से या फ़िर जीते जी पिंडदान से...कई बार कई तरह से बेमौत मरता है...

उत्तरोत्तर दर्ज की जाने वाली मृत्यु दर में वृद्धि.....

मृत्यु है देह की अपेक्षा अनिश्चित भावनाओं / सद्भाभावनाओं की असमय !!

सन्तान द्वारा माता-पिता को अपने जीवन से बेदख़ल करना

माता-पिता की असमय मृत्यु!

समाज को सम्भावनाओं या सद्भावनाओं से बेदखल करना या फ़िर आपदा में अवसर को तलाशना....

समाज की असमय मृत्यु!

समाज का प्रतिनिधि कौआ, अपनी ही प्रजाति के असहाय सदस्य को चोंच मार-मार कर पहले घायल करता है..फिर उसे खाने के लिए अवसर की प्रतीक्षा.....

जब संसार की ऋतुएं बदलती हैं, धड़कनों का विलंबित स्पंदन सामंजस्य के साथ संभावनाओं में गोते लगाने लगता है......

...सकल संसार के मृत्यु की कल्पनाशीलता का स्वनिर्मित दर्शन..प्रलय काल!

 संसार की असमय मृत्यु!!

असमय मृत्यु एक निरंतर जारी रहने वाली प्रक्रिया है.....आपदाएं अवसर....

कई बार देह का मरना...

आत्मा के मरने के अरसे बाद होता है!!


©®अमनदीप "विम्मी"

Saturday, 5 June 2021

छम-छम, छम-छम, छम-छम, छम-छम


 #बाल_कविता


बादल आए बादल आए

नीले नीले नभ पर छाए


पेड़ों ने अपनी बाँह पसारी

उनके घर गूँजी किलकारी


पंछी चहके उपवन महके

भँवरे फिरते बहके बहके


नदी-ताल ने आँख बिछाई

झरनों ने भी दौड़ लगाई


आओ मिलकर नाचे गाएँ

बादल को कुछ और रिझाएँ


बादल देख मोर नाचेगा

देखो फिर पानी बरसेगा


छम-छम छम-छम 

छम-छम छम-छम

©®अमनदीप "विम्मी"

तितली के चूमने से फूलों में भर रहे हैं रंग


 एक बौराई हुई कोयल गा रही है गीत

इस उम्मीद पर

कि भर जाएगी मिठास आमों में ......


मोर नाच रहा है बेसुध सा

कि उसे नाचता देख बरसेंगे बादल.....


ठीक उसी उम्मीद से चिड़िया बुन रही है घोंसला 

कि कोई तूफान न हिला पाएगा उसे.....


एक लड़की रख रही है व्रत

सुंदर, सुनहरे भविष्य की आस में.....


एक पत्नी बुन रही है उम्मीदें

वफ़ा ,रिश्तों और सम्मान के.....


एक प्रेयसी देख रही है सपने

घर और बगिया के.....


ठीक उसी तरह, जब  मैं लिख रही हूँ कविता

तुम्हारे लिए......

 

तितली के चूमने से फूलों में भर रहे हैं रँग !


©®अमनदीप "विम्मी"

कविता संग्रह

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