पेशानी पर उभर आई
चिंता की लकीरें ,
गले से उतरते
अपमान के कड़वे घूँट ,
जहन में उगती
लम्बी सी परछाई ,
कब जुदा होने देते हैं
मुझे तुमसे |
अग्यात शून्य में ताकती
निगाहों में -
शाम उतरे उस से पहले
सपनों को उड़ान देना चाहती हूँ !
भ्रम बनने से पहले
सहेज लेना चाहती हूँ उम्मीदें ,
हौले हौले रेंगते हुए अब
दौड़ने की हिम्मत जुटा ली है मैने ,
उगा लिए हैं पँख
अब - उड़ना चाहती हूँ मैं .....!!
©®अमनदीप / विम्मी
चिंता की लकीरें ,
गले से उतरते
अपमान के कड़वे घूँट ,
जहन में उगती
लम्बी सी परछाई ,
कब जुदा होने देते हैं
मुझे तुमसे |
अग्यात शून्य में ताकती
निगाहों में -
शाम उतरे उस से पहले
सपनों को उड़ान देना चाहती हूँ !
भ्रम बनने से पहले
सहेज लेना चाहती हूँ उम्मीदें ,
हौले हौले रेंगते हुए अब
दौड़ने की हिम्मत जुटा ली है मैने ,
उगा लिए हैं पँख
अब - उड़ना चाहती हूँ मैं .....!!
©®अमनदीप / विम्मी