Thursday, 15 February 2018

यूँ ही

ज़ख्म कुरेदोगे तो नासूर बन जाएंगे ,
नासूर कुरेद कर क्या पाओगे .
समुन्दर से ज्यादा गहराई है मुझ में ,
उतरोगे डूबते चले जाओगे .

मंजिलें  बैठी रही ऊम्मीद में ,
तकती रहीं रस्ता मेरा .
आसमाँ कम उडान लम्बी थी मेरी !
पर कुतर कहते हो उड़ पाओगे ?

सुबह से शाम हुई जाती है,
रात चली आती है हौले हौले ,
ख्वाबों पर तो  हक रहने दो  मेरा ,
सुबह होते ये भी ढल जाएँगे.

©®अमनदीप/विम्मी

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