ज़ख्म कुरेदोगे तो नासूर बन जाएंगे ,
नासूर कुरेद कर क्या पाओगे .
समुन्दर से ज्यादा गहराई है मुझ में ,
उतरोगे डूबते चले जाओगे .
मंजिलें बैठी रही ऊम्मीद में ,
तकती रहीं रस्ता मेरा .
आसमाँ कम उडान लम्बी थी मेरी !
पर कुतर कहते हो उड़ पाओगे ?
सुबह से शाम हुई जाती है,
रात चली आती है हौले हौले ,
ख्वाबों पर तो हक रहने दो मेरा ,
सुबह होते ये भी ढल जाएँगे.
नासूर कुरेद कर क्या पाओगे .
समुन्दर से ज्यादा गहराई है मुझ में ,
उतरोगे डूबते चले जाओगे .
मंजिलें बैठी रही ऊम्मीद में ,
तकती रहीं रस्ता मेरा .
आसमाँ कम उडान लम्बी थी मेरी !
पर कुतर कहते हो उड़ पाओगे ?
सुबह से शाम हुई जाती है,
रात चली आती है हौले हौले ,
ख्वाबों पर तो हक रहने दो मेरा ,
सुबह होते ये भी ढल जाएँगे.
©®अमनदीप/विम्मी
No comments:
Post a Comment