आँखें किसकी कब रोती हैं
ये बस दिल के ग़म धोती हैं
कुछ तूने कुछ मैंने छांटे
ज़ख्म उम्र के पल में बाँटे
दर - ब - दर कम होतीं साँसे
कब तक किसका तन ढोतीं हैं
आँखें किसकी कब रोती हैं
बैरन बन गई आज दोपहरी
शाम साँप सीने पर लोटे
रात सखी सपनों संग काटी
यूँ ही सब बातें होती हैं
आँखें किसकी कब रोती हैं
ये बस दिल के ग़म धोती हैं .
©®अमनदीप /विम्मी
ये बस दिल के ग़म धोती हैं
कुछ तूने कुछ मैंने छांटे
ज़ख्म उम्र के पल में बाँटे
दर - ब - दर कम होतीं साँसे
कब तक किसका तन ढोतीं हैं
आँखें किसकी कब रोती हैं
बैरन बन गई आज दोपहरी
शाम साँप सीने पर लोटे
रात सखी सपनों संग काटी
यूँ ही सब बातें होती हैं
आँखें किसकी कब रोती हैं
ये बस दिल के ग़म धोती हैं .
©®अमनदीप /विम्मी