मुझे फ़र्ज का जामा पहना
उसे अधिकार दे दिया गया
अब वो
अपना दिन-प्रतिदिन बढ़ता पेट देख
इठलाती है।
हर रोज
कुछ चटक जाता है मेरे अन्दर
बार - बार इशारों में कराया जाता है अहसास
कि
वह औरत जो माँ नहीं बन सकती
आज भी गन्दी गाली है
जिसे हर कोई वैश्या बना जाता है
रोज किया जाता है
चीर- हरण
उसके आत्म- सम्मान का
घर में, समाज में...
हर रोज कुछ टूटता है
रोज कुछ कतरे खून रिसता है
नासूर बन जाता है
रोज.......।
©®अमनदीप/ विम्मी
20/04/2004
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