Thursday, 27 February 2020

रोते हुए अच्छे लगते हो तुम




ज्ञात है मुझे
रोका गया है तुम्हें रोने से, हमेशा!
बचपन यह सुनने में बीता
छी: लड़का होकर रोता है...
इस तरह रोने पर लगा दिया गया अंकुश
तुम्हारे कानों में ब्रह्मवाक्य की तरह पिरोया गया
बहादुर आदमी रोते नहीं हैं
और तुम्हें दुःखी होने और खुश होने के
भाव से कर दिया गया दूर
ताकि तुम रह सको पुरुष ...
तुम्हें लोगों की नज़रों में कमजोर नहीं होना था
सो तुमने अश्रुओं के वेग को
कभी हावी नहीं होने दिया बहादुर आदमी होने पर
लकीर जो खींच दी गई स्री और पुरुष के
आँखों के मध्य
उसे पार करने में हिचकिचाहट महसूस हुई तुम्हें
पर, सच कहूँ तो
तुम मुझे रोते हुए बहुत अच्छे लगते हो
चार चाँद लग जाते हैं
तुम्हारे पौरुष पर
क्योंकि
जिन आँसुओं को स्त्रियोचित मान कर
तुम्हें विमुख कर दिया गया उसके भाव से
उन आँसुओं को बहा
नारी का अद्भुत गुण समाहित कर लेते हो
मिल जाता है तुम्हें शक्ति का साथ...
बन जाते हो अर्धनारीश्वर
और
चाँद सुशोभित हो जाता है
तुम्हारे कपाल पर।

©®अमनदीप/विम्मी

Wednesday, 19 February 2020

तुम आसमान में बनाना आशियाना











जब तक इस घर को वारिस नहीं दे देती
तब तक हर अधिकार से वंचित हो तुम....
कह कर दुत्कारी गई औरतें
भावनाओं से भी हो जाती हैं बाँझ
निःशब्द और खानाबदोश.....
खानाबदोश सी ढूँढती हैं वो कोना
जहाँ तिरोहित कर सकें
आँखों के पोरों तक पँहुचा नमक
उकेर सकें अपने जज़्बात
किसी कागज के कोने पर ...
काम के बीच कुछ वक्त उधार माँग
झाँकती है बाहर
ढूँढने अपना खिड़की भर आसमान...
 देखती हैं चिड़िया
और दोहराती हैं अपने आप में
 किसी ने बताया नहीं तुम्हें
 कितनी सुंदर हो तुम
नील चिरैया !
चहचहाती, फुदकती
कितनी प्यारी लगती हो !
तुम आसमान में ही बनाना आशियाना अपना
पँखों को देना मज़बूती और नाप लेना सारा आकाश....
तुम्हें आभास नही शायद
कि खिड़की भर आसमान ढूँढते कैदियों के जज़्बात
नदी बनने के पहले ही रेगिस्तान में तब्दील हो जाते हैं...
कुछ दानों का लालच
तुम्हारी स्वतंत्रता में सेंध है...
पता है तुम्हें धरती सिर्फ दूसरी तरफ से ही
हरी दिखाई देती है....

©®अमनदीप / विम्मी

Sunday, 2 February 2020

चुनना प्रेम



प्रेम और ईश्वर से
किसी एक को चुनना हो
तो चुनना प्रेम
और बाँट देना उसे औरतों में
यकीन मानो
वो प्रेम को सहेजना जानती हैं
अनगिनत रिश्तों में ढल
औरतें बाँट देंगीं  प्रेम
आने वाली पीढ़ियों में
और ये धरती
हो जाएगी ईश्वरमय।

© अमनदीप / विम्मी
०१/०२/२०२०

कविता संग्रह

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