जब विश्वास का तारा
टूटता है...
तो होती है
गूँज...
न भरने वाले
सन्नाटे की...
और फिर
पसरता है
शोर ही शोर...
भीतर
परत दर परत...
©® अमनदीप/विम्मी
टूटता है...
तो होती है
गूँज...
न भरने वाले
सन्नाटे की...
और फिर
पसरता है
शोर ही शोर...
भीतर
परत दर परत...
©® अमनदीप/विम्मी
No comments:
Post a Comment