मनुष्य की परिभाषा जो
अनगिनत निबंधों में लिखी और पढ़ाई गई
उसकी प्रथम पंक्ति हमेशा ही जिस वाक्य से शुरू हुई वह थी
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है
मनुष्य ईश्वर की सबसे अनुपम कृति है
बहुत मुमकिन है आगे निबन्धों में लिखा और पढ़ाया जाए
मनुष्य एक असमाजिक प्राणी है
संवेदन शून्यता की चरम स्तिथि है समाज ....
इसलिए तथाकथित मनुष्यों से डरो
हे जानवरों
तुम सबसे ज्यादा शक मनुष्यों पर करना
उस प्रजाति पर करना जो सबसे बुद्धिमान है
ये नए नए तरीके गढ़ लेगा
तुम्हारे समूल नाश के....
तो बदल दी जानी चाहिये
समाज की परिभाषा
मनुष्य पर लिखे गए निबंध की पहली पंक्ति
आज जबकि मनुष्य में निहित
भावनाओं की एक प्रजाति, मानवता लुप्तप्राय है
जल प्रवाह के नियमों की तरह
उसे भी ऊपर से नीचे बहना सीखना होगा .....
©®अमनदीप/विम्मी