ज्यादा ही बदली सी लगती है
प्रत्येक व्यक्ति के अंदर
बैठा एक
शकुनि...
समय के हिसाब से
फेंकता है पासे....
और
देखता रहता है
टकटकी लगाए
किस ओर बैठेगा ऊँट...
या फिर
ऊँट को
अपने हिसाब से बैठा कर
चलता है चालें...
शकुनि पहले से ज्यादा
शातिर हो गया है
अब
कृष्ण को भी पता नहीं चलती
उसके शकुनि होने की बात
अब लड़वाता नहीं वो....
प्यार से
एक एक का गला काटता है
संवेदनशीलता
और
समाज सेवा के नाम पर...
©®अमनदीप/विम्मी
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