Wednesday, 25 November 2020

तेरे बदले मैं ज़माने की कोई चीज़ न लूँ


चाँद की कितनी ही चीजों से तुलना की गई


कभी महबूबा तो कभी पत्नी....

कभी मामा चाँद से प्यारा लगा तो कभी भाई....

दिल चाँद कभी...तो दिल का टुकड़ा भी चाँद...


किसी ने मुझे भी चाँद की उपमा दी 

मैंने बदले में उसे...


जहाँ में एक चाँद और था 

यकीनन जहाँ का सबसे खूबसूरत चाँद ...

वो रोटी यहाँ तक कि रोटी का टुकड़ा भी जो परोसा गया किसी गरीब की थाली में.....

मन झूम कर गाया था उस गरीब का 

और फिर उसके बदले जमाने की कोई चीज़ लेने की इच्छा भी न रही उसकी.....


किसी गरीब की थाली में पड़ा वो चाँद का टुकड़ा तृप्त कर रहा था पेट संग आँखें

और सबसे शीतल वो चाँदनी जो आ बसी थी उसकी आँखों में जगमगाती सी.......

तितलियों का होना मधु का होना है


 कभी देर तक 

न दिखूँ तुम्हारे आस पास.....

अचानक मेरे शब्द हवा में तैरते 

या तुम्हारे कानों को छू कर गुजरते से महसूस होने लगे

तुम हमारे कमरे की खिड़की पर आना 

दोनों हथेलियों में थाम कर चेहरा 

चूम लेना माथा मेरा.....

माथे पर अंकित चुम्बन आँखों में इंद्रधनुष

और होठों पर तितलियाँ रख देता है......


उड़ने देना मेरी हँसी को तितलियों सा

ये चूम आएँगी फूलों की पेशानी

और आ बैठेंगी वापस तुम्हारे होठों पर

मधू सी मिठास लिए........


तितलियों का होना अर्थात फूलों, पेड़-पौधों, बगीचों का होना

फूलों का होना यानि कि मधु का होना.....

भरा हुआ मधु छोड़ जैसे उड़ जाना राज्ञी का छत्ते से

मै भी वैसे ही भरा छोड़ जाना चाहती हूँ जहाँ....


Tuesday, 10 November 2020





 "कहो तो दूँ दस्तक सपनों में तेरे

रात भर यूँ भी जागा करे हैं हम"


✍️अमनदीप

यह समय ख़त्म ही नहीं होता


 मैं एक माँ हूँ

मेरा सबसे बड़ा दर्द आज यह है

कि मैं अपनी बेटी को

किसी एक जात ( मर्द ) पर

विश्वास करना नहीं सिखा पा रही....


अलबत्ता कहना चाह रही हूँ

पहले करना अविश्वास

यह जानते हुए भी कि किसी भी रिश्ते की नींव

टिकी होती है विश्वास पर ...


पर, एक सच यह भी तो है

विश्वास टूटता भी है वहीं 

जहाँ सबसे ज्यादा विश्वास होता है...


यह अविश्वासी समय है.. खत्म ही नहीं होता।

कविता संग्रह

  https://www.amazon.in/dp/B09PJ93QM2?ref=myi_title_dp