चाँद की कितनी ही चीजों से तुलना की गई
कभी महबूबा तो कभी पत्नी....
कभी मामा चाँद से प्यारा लगा तो कभी भाई....
दिल चाँद कभी...तो दिल का टुकड़ा भी चाँद...
किसी ने मुझे भी चाँद की उपमा दी
मैंने बदले में उसे...
जहाँ में एक चाँद और था
यकीनन जहाँ का सबसे खूबसूरत चाँद ...
वो रोटी यहाँ तक कि रोटी का टुकड़ा भी जो परोसा गया किसी गरीब की थाली में.....
मन झूम कर गाया था उस गरीब का
और फिर उसके बदले जमाने की कोई चीज़ लेने की इच्छा भी न रही उसकी.....
किसी गरीब की थाली में पड़ा वो चाँद का टुकड़ा तृप्त कर रहा था पेट संग आँखें
और सबसे शीतल वो चाँदनी जो आ बसी थी उसकी आँखों में जगमगाती सी.......
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