Tuesday, 22 December 2020

क्या तुम मेरे सखा बनोगे

 मेरी कविता पढ़ कर

मुझे सन्देश भेजने वाले एक हितैषी ने लिखा

आप बहुत अच्छा लिखती हैं, पर जानती हैं क्या

एक लेखक को हमेशा विस्तारवादी दृष्टि कोण रखना चाहिए....


एक गुरु मिलने की सम्भावना मात्र से

कमल खिलते दिखे चहुँ ओर, ठीक वैसे ही जैसे किसी चलचित्र में दिखते हैं

लेखनी परिष्कृत होने की खुशी से नाचे जाने कितने मन मयूर...


पहले अध्याय में बताया गया मुझे

आप की रचनाओं में एक कशिश है जो अलग करती है दूसरों से आपको

परन्तु मैं अगर बड़ाई करता हूँ तो कमियाँ भी बताता हूँ....


दूसरे अध्याय में बँधने लगी पृष्ठभूमि

एक बात कहनी है बुरा न मानो तो

समझ बड़ी रखो यही तो विस्तार वादी होने की प्रक्रिया है

समझ रही हो न बात मेरी .......


तीसरा अध्याय समझ थोड़ी और बड़ी करने पर था 

जिसमें विस्तार दिया गया कहानी को

पूछा गया एक प्रश्न और खुद ही दिया गया जवाब

मैं रियल लाइफ शक्ति कपूर या रंजीत दिखता हूँ ?

नहीं हूँ वैसा 

जानता हूँ मर्यादा , करता हूँ इज्जत ......

पर मानना एक बात

कभी किसी को रिश्ते में बाँधने की चेष्टा मत करना

खुले मन से स्वीकार करना दोस्ती

देखो, मैं अगर बड़ाई करता हूँ तो कमियाँ भी बताता हूँ....


चौथे अध्याय ने इंतज़ार नहीं किया , पटाक्षेप होने लगा कहानी का आधी रात ....


सुनो, तुम बेमिसाल हो

बेहद खूबसूरत हो

सब कुछ कहना पर भाई जी मत कहना

और सुनो तुम बहुत खूब हो

मैं अगर कमियाँ बताता हूँ तो खूबियाँ भी गिनाता हूँ....


भौंचक्क सी मैं कहना चाहती थी पर कैसे कहती

कि मैं तुम पर विश्वास करना चाहती हूँ 

और तुम हो कि बारम्बार अविश्वास करने की वजह देकर कहते हो तुम अच्छे मित्र होने की काबिलियत रखते हो.....


और ऐसा करते हुए तुम हरेक शख़्स को पहले शक के दायरे में रख देते हो ....


©®अमनदीप " विम्मी "




ग़लती

 कई बार कोई बहुत जरूरी चीज़


बहुत सम्भाल कर रखती हूँ


इतना कि भूल जाती हूँ


रख कर उसे......


फिर बहुत ढूँढने पर भी नहीं मिलती वह


ऐन ज़रूरत के वक्त....


तुम्हें सम्भालने में भी यही गलती हुई हो शायद !


©®अमनदीप "विम्मी"

Friday, 4 December 2020

नदी और हवा सी अनवरत यात्रा है प्रेम

 प्रेम को पहाड़ सा नहीं होना चाहिए

पहाड़ से तो दुःख होते हैं

उसे तो होना चाहिए हवा सा निर्मल

नदी सा चलायमान....


हवा के प्रेम में लहराते पत्ते, बल खाती बेलें, झूमती लटें

उन लटों में उलझता मन 

सब कितना सम्मोहक होता है...


नदी की अनवरत यात्रा में खुरदुरे से थे जो

मुलायम और चमकदार हुए वो पत्थर....

बहाती रही लोगों के पैरों सनी मिट्टी, थकान, अपना अस्तित्व / समंदर हो जाने तक.......


मुझे यात्रा करनी है निर्विघ्न अपने हृदय से तुम्हारे हृदय तक

नदी से थोड़ी नमी, हवा से मुलायमियत और पारदर्शिता लिए

आ रही हूँ मैं ...

तुम भी पोंछ लेना गर्द, मिटा देना खरोंचे, खत्म कर देना सलवटें ...


तुम भी नदी और हवा को महसूस करना

तुम भी करना प्रेम .....

प्रेम को महसूस करने के लिए रुकना पल दो पल

कि ठहरना जरूरी है प्रेम में....



Wednesday, 2 December 2020

पुल और छत रँग भरते हैं

 पुल का होना

आवागमन का जरिया हो सकता है, पर

इस बात की तसल्ली नहीं 

कि वह जोड़े रखेगा

दोनों किनारों पर बसे लोगों के मन

या उन के जज़्बात....


एक छत चार लोगों के रहने की जगह तो हो सकती है

पर, इस बात का यकीन नहीं 

कि एक छत के अंदर 

न हों सबकी अपनी-अपनी छतें....


शादी रिश्ते की वैधता की मुहर तो हो सकती है

पर, प्रेम करने की वजह नहीं

न ही इस बात की तसल्ली

कि दो लोगों के मध्य

पाट दी गई किसी तीसरे की होने की जगह......


प्यार करना हो तो करना पुल को पार

छतों को सजाना एक रँग से

और उस रँग से उगाना तीसरा सबसे खूबसूरत रँग....


कविता संग्रह

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