Monday, 18 January 2021

आशा, उम्मीद और लय के साथ उदासियों को लिखे खत कविता है


 

उदासियों का रँग  मिलता है ढलते सूरज के रँग से 

कई बार लगा ऐसा जब किसी / खबर के आने की उम्मीद ख़त्म हुई सहसा......


कई बार ऐसा भी लगा कि

उदासियों के चेहरे नहीं होते न ही कोई रँग...


जैसे श्याम और श्वेत रँग नहीं है

काले से शुरू होकर सफेद पर खत्म हो जाती रँग पट्टिकाओं के बीच भरे हैं अनगिनत रँग.......


काला रँग नहीं है वो है जज़्ब करना उदासियों को

और सफेद है रँगों का परावर्तन......


तो मैं लगा देना चाहती हूँ

उदासी की आँखों में आशा का काजल

कजरारी आँखें देख ठहर जाएँ सपने शायद

जो उदासियों के बुदबुदाते ओठों को

दे सकें वजह मुस्कुराने की...


उम्मीदों के रँग से सराबोर

कर देना चाहती हूँ उनका लिबास और कर देना चाहती हूँ श्रृंगार ऐसा 

कि उदासी के पैरों में बंधी हो तहजीब की पायल


आशा, उम्मीद और लय के साथ उदासियों को लिखे खत

कविता है...

©®अमनदीप "विम्मी"

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