मेरे शहर तुम इनसे नहीं मिलते
तुम्हारे घरों के दरवाजे पास होकर भी पास नहीं होते
कहाँ बतियाते हो सीढ़ियों पर बैठकर घन्टों
कहाँ धूप में खिलखिलाते हो
कहाँ बरसते हो प्यार बन कर
कहाँ पतझड़ के बाद फिर से हरियाते हो
मेरे शहर तुम थोड़े से
गाँव हो जाओ न.....
तुम्हारे शहर में चिड़िया तुम्हें देख मुस्कुराती नहीं है
पास आ तुम्हारे प्यार से गुनगुनाती नहीं हैं
चोंच भर दाना खाती नहीं है
चिड़ियों को आँख भर सहलाओ न
शहर तुम भी सुबह कुछ चहचहाओ न
मेरे शहर तुम थोड़े से
गाँव हो जाओ न....
तुम्हारे यहाँ साँझ मुरझाती नहीं है
रात रोशनी में मुँह छुपाती नहीं है
बच्चों थोड़ा सा ठहठहाओ न .....
धुँआ धुआँ सी रात मुट्ठी भर भर भोर बनाओ न
गाँव तुम शहर को गाँव सा भर जाओ न..
मेरे शहर तुम थोड़े से
गाँव हो जाओ न...
©®अमनदीप "विम्मी"
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