Monday, 5 April 2021

शहर में गाँव जैसा कुछ



मेरे शहर तुम इनसे नहीं मिलते

तुम्हारे घरों के दरवाजे पास होकर भी पास नहीं होते

कहाँ बतियाते हो सीढ़ियों पर बैठकर घन्टों

कहाँ धूप में खिलखिलाते हो 

कहाँ बरसते हो प्यार बन कर

कहाँ पतझड़ के बाद फिर से हरियाते हो

मेरे शहर तुम थोड़े से

गाँव हो जाओ न.....


तुम्हारे शहर में चिड़िया तुम्हें देख मुस्कुराती नहीं है

पास आ तुम्हारे प्यार से गुनगुनाती नहीं हैं

चोंच भर दाना खाती नहीं है

चिड़ियों को आँख भर सहलाओ न

शहर तुम भी सुबह कुछ चहचहाओ न

मेरे शहर तुम थोड़े से

गाँव हो जाओ न....


तुम्हारे यहाँ साँझ मुरझाती नहीं है

रात रोशनी में मुँह छुपाती नहीं है

बच्चों थोड़ा सा ठहठहाओ न .....

धुँआ धुआँ सी रात मुट्ठी भर भर भोर बनाओ न

गाँव तुम शहर को गाँव सा भर जाओ न..


मेरे शहर तुम थोड़े से

गाँव हो जाओ न...


©®अमनदीप "विम्मी"

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