आज मैंने तुम्हें अपने पहले क्रश के बारे में बताया
तुम्हें बताया कि कभी बता नहीं सकी यह
माँ, पापा या पति को.....
फिर मैंने तुम्हें
अनगिनत सवालों, तपती निगाहों, दहलीज़ों की तपिश, देह की बाज़ीगरी, वगैरह....वगैरह.....
अनगिनत बातों के चक्रव्यूह में उलझाया.....
सोलहवें साल में तुम नहीं समझ पाओगी ये मनगढ़ंत कहानियाँ
तुम्हें कुछ अनचाही पीड़ाओं से दूर रखने का ज़रिया हैं...
और मैं तुम्हें यक़ीन दिला कर खुश हूँ
कि बेटियाँ माँ की सबसे अच्छी सहेली होती हैं....
©®अमनदीप "विम्मी"
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