Thursday, 15 July 2021

हमेशा बचा रह जाता है कुछ अधूरा सा....

 हर जाने में रह जाता है कुछ ठहरा सा

बार -बार पलट कर देखता हुआ.....


पठित में कुछ अपठित 

हर दृष्ट के पीछे कुछ अदृष्ट 

सुख के साथ अटका सा कोई दुःख...


सब कुछ हर वक़्त हरा नहीं होता

पीला हो झड़ता रहता है देर - सबेर

किसी पूरे होते पल में

अधूरा सा बचा रह जाता है कुछ.......


कुछ चीज़ें जितनी सरल होती हैं उतनी जटिल भी

जटिलता के साथ भी आ जाती है सरलता ......


कुछ बचा लेने की चाह में 

हर बार खो जाता है कुछ

कभी ख़त्म नहीं होतीं कुछ बातें

बस बदल लेती हैं मायने गुज़रते समय के साथ......


कब ख़त्म होती है कोई बहस 

कोई सिरा छूट जाता है तो पकड़ लिया जाता है कोई और सिरा

बची रह जाती बहस किसी और घटना के घटित होने की बाट जोहती......


हर उत्तरित में अनुत्तरित रह जाता है कुछ

हर चुप्पी के साथ मुखर होते हैं कुछ शब्द

किसी के होने या न होने के बीच

बची रहती है एक जगह 

जहाँ तुम होते भी हो....... और नहीं भी....!!


©®अमनदीप "विम्मी"



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