Wednesday, 29 December 2021

गोलू की पीली छतरी

 


गोलू पीली छतरी लाया

नाचा गाया ख़ूब इतराया


किसने देखी छतरी ऐसी

राजा की टोपी के जैसी


मैं तो हूँ राजा का बेटा

सावधान कोई मुझसे ऐंठा


पेड़ के नीचे सभा लगाई

तुम जनता मैं राजा भाई


बोला, सुनो ! एक कुर्सी लाओ

किसको क्या दुःख मुझे बताओ


कहो किसको क्या कहना है

सबको मिल जुल कर रहना है


बारिश संग तेज हवा तब आई

गोलू की छतरी पलटाई


हो गए पूरे कपड़े गीले

धुल गए सारे रंग चटकीले


सबने घर तक दौड़ लगाई

हो गई गोलू की जग हंसाई


हा हा हा हा ही ही ही ही


©®अमनदीप " विम्मी "

काश! कोई तारा टूटे


 जो बिछड़ा 

थोड़ा थोड़ा हमेशा बचा रहा मुझमें

दोस्त, प्रेम, सुख...


इस तरह थोड़ी ही सही नमी रही मुझमें

और हर दुःख से थोड़ी सी दूरी....


इतना अधैर्य कि

टहनी रोपने के उपरांत

नहीं कर पाई इंतज़ार

खोदती रही ज़मीन बार बार.


पिंजड़े में रखी चिड़िया देख 

यही ख़्याल रहा हमेशा

कि चिड़िया को नापना चाहिए आकाश

मजबूत होने चाहिए पँख....


पलकों के टूटे हुए बाल को

भींची हुई मुट्ठी की पीठ पर रख माँगती रही दुआएँ....


चाहती रही एक तारा टूटे

और मैं अंगुली पर अंगुली चढ़ा

माँगू 

हर लड़की के हक और इज़्ज़त की सलामती

किसान का भरा हुआ पेट

फ़ौजी की लम्बी उम्र

इन्सान का सिर्फ़ इन्सान बने रहना....


इतना समय बीत गया

अब तक मेरी आँखों की परिधि में  कोई तारा नहीं टूटा...


©®अमनदीप " विम्मी "

थोड़ा और नमकीन हो जाएगा समंदर

 आज रात भी कई बच्चे नैरोबी में

खुली छत के नीचे सोएँगे, उठा लिए जाएँगे

बिकेंगे ऊँचे दामों पर

जड़ों से अलग कर दिए जाएँगे

जड़ों से अलग हुए बच्चे 

जड़ों की तरफ़ नहीं लौट पाते कभी..


ग्यारह साल की बच्चियाँ 

ग्राहकों से लेंगी सिर्फ एक डॉलर 

परिवार के पेट की आग

न बुझने पर

करेंगी कई पारियाँ

बार बार गिराएँगी कोख़

या फ़िर लगाएँगी बोली उसकी....


साँस और रक्त के साथ अपना रास्ता बनाती पीड़ा

घोल कर रख देगी उनका दिल दिमाग शरीर

ये पीड़ाएँ स्थानांतरित होती रहेंगी 

पीढ़ी दर पीढ़ी...


खूब जिरह की जाएगी, बनाई जाएँगी समितियाँ

कुछ मानवतावादी लोग लगाएँगे गुहार

चुप हो जाएँगे आहिस्ता आहिस्ता

कुछ लिखेंगे सनसनीखेज सत्य कहानियाँ

दायित्व मुक्त हो जाएँगे... 


हम तुम जैसे कुछ 

भरेंगे सिसकियाँ कुछ देर

फ़िर स्मृति लोप का शिकार हो जाएँगी 

ये कहानियाँ...


जो घुलते जा रहे उन पीड़ाओं में

मिल जाएँगे समंदर में एक दिन

थोड़ा और नमकीन हो जाएगा समंदर एक दिन बाद...


©®अमनदीप " विम्मी "

कविता संग्रह

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