जो बिछड़ा
थोड़ा थोड़ा हमेशा बचा रहा मुझमें
दोस्त, प्रेम, सुख...
इस तरह थोड़ी ही सही नमी रही मुझमें
और हर दुःख से थोड़ी सी दूरी....
इतना अधैर्य कि
टहनी रोपने के उपरांत
नहीं कर पाई इंतज़ार
खोदती रही ज़मीन बार बार.
पिंजड़े में रखी चिड़िया देख
यही ख़्याल रहा हमेशा
कि चिड़िया को नापना चाहिए आकाश
मजबूत होने चाहिए पँख....
पलकों के टूटे हुए बाल को
भींची हुई मुट्ठी की पीठ पर रख माँगती रही दुआएँ....
चाहती रही एक तारा टूटे
और मैं अंगुली पर अंगुली चढ़ा
माँगू
हर लड़की के हक और इज़्ज़त की सलामती
किसान का भरा हुआ पेट
फ़ौजी की लम्बी उम्र
इन्सान का सिर्फ़ इन्सान बने रहना....
इतना समय बीत गया
अब तक मेरी आँखों की परिधि में कोई तारा नहीं टूटा...
©®अमनदीप " विम्मी "
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