Tuesday, 12 May 2020

आस

"वक़्त कितना भी कठिन क्यों न हो
 दरवाजे की सिटकनियाँ
 मुस्तैदी से बंद  ..
 न आ पा रही हो खुली ताजी हवा
 तब भी
 एक खिड़की पूरब की तरफ
 खुली रखनी चाहिए हमेशा
 कि वही खिड़की
 आस की आस को जिंदा रखती है। "
,©®अमनदीप/विम्मी

No comments:

Post a Comment

कविता संग्रह

  https://www.amazon.in/dp/B09PJ93QM2?ref=myi_title_dp