चेहरे की झुर्रियों में सिमट आया है
सदियों का सफ़र,
माथे की लकीरों से
जज़्बे का बयाँ होता है...
आज भी हँसती हो तो
फ़ूल से झड़ते हैं...
देह में हर रँग
माटी के बसते हैं..
अच्छा है तुम्हारे गाँव को
शहर नहीं लगता...
©® अमनदीप/विम्मी
दिल से निकली बातें जो दिल को छू जाएँगी । सबके दिलों को छूने के छोटे छोटे प्रयासों में आप सब की शुभकामनाओं की चाह के साथ , आप सब को समर्पित!!! " ख़ुश्बू-ए-इत्र मुबारक़ ए ज़माने तुझको मेरा किरदार ही काफ़ी है महकने के लिए "
No comments:
Post a Comment