Thursday, 9 July 2020

अच्छा है






चेहरे की झुर्रियों में सिमट आया है
सदियों का सफ़र,
माथे की लकीरों से 
जज़्बे का बयाँ होता है...
आज भी हँसती हो तो
फ़ूल से झड़ते हैं...
देह में हर रँग
माटी के बसते हैं..
अच्छा है तुम्हारे गाँव को
शहर नहीं लगता...

©® अमनदीप/विम्मी

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