धूप मेरे हिस्से की लिए चलता रहा
वो शख्स मेरा बाप था बिन कहे जलता रहा
पलते थे मेरी आँख में जो ख़्वाब अधूरे न रहें
दिन-रात थी चिन्ता मेरी हर हाल वो जगता रहा
चोट जब मुझको लगी वो भी रोया था बहुत
काँटे मेरी राह के पलकों से वो चुनता रहा
न कभी कम थे पैरहन न जूतों की चमक फीकी पड़ी
चार जोड़ों में भी खुश छाले पैरों में लिए चलता रहा
ता-उम्र खुदा की इबादत करता रहा है वो अमन
सुबहो-शाम उसकी दुआ में मैं दीप बन जलता रहा
©®अमनदीप/ विम्मी
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